Patal Bhuvaneshwar | पाताल भुवनेश्वर
पाताल भुवनेश्वर
सन्देश नोट :
सभी यात्रियों से अनुरोध है कि मंदिर / गुफा की व्यवस्था मंदिर कमेटी के सहयोग से की जाती है, जिसके लिए मंदिर कमेटी सभी पर्यटकों की आभारी है। यह गुफा, पूरे भारतवर्ष की धरोहर है। कृपया यात्रियों से अनुरोध है कि गुफा के अंदर नाम न लिखें और न ही किसी प्रकार की छेड़ छाड़ करें। आइये, हम सब स्थान की गरिमा बनाये रखें। मंदिर कमेटी पाताल भुवनेश्वर आगमन पर धन्यवाद।
Episode mein aage hain….
दोस्तो उत्तराखंड गुरु में आपका स्वागत है।
वैसे तो दुनियाभर में ऐसी कई गुफाएं हैं, जो अपने अद्भुत रहस्य और खासियत के वजह से काफी मशहूर हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गुफा के बारे में बताने जा रहे हैं जहां मान्यता है कि इस गुफा में हिंदू धर्म के 33 कोटि देवी-देवता एकसाथ निवास करते हैं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा, भक्तों के आस्था का केंद्र है। यह गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फीट अंदर है। पाताल भुवनेश्वर चूना पत्थर की एक प्राकृतिक गुफा है, जो उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले में, गंगोलीहाट नगर से १४ किमी दूरी पर स्थित है। इस गुफा में धार्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई प्राकृतिक कलाकृतियां स्थित हैं। भुवनेश्वर नामक गांव की पार्किंग पर गाडी लगाकर यात्रा आरम्भ होती है।
इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले मेजर समीर कटवाल के मेमोरियल से होकर गुजरना पड़ता है। कुछ दूर चलने के बाद एक ग्रिल गेट मिलता है जहां से पाताल भुवनेश्वर मंदिर की शुरुआत होती है। मार्ग में आपको १-२ छोटी छोटी दुकानें भी दिखाई देंगी। थोड़ा आगे चलते हुए पहाड़ी जूस, जिसका आनंद आप मंदिर से लौटते समय ले सकते हैं। मंदिर पहुंचने से पहले बायीं ओर सुन्दर घंटियाँ और आसपास का वातावरण बहुत ही मनमोहक लगता है। गुफा के निकट पहुंचकर आपको छोटा सा एक गेट दिखाई देगा जहां पर स्कंदपुराण से लिया गया श्लोक भी आपको दिखाई देगा। मन में एक जिज्ञासा जरूर होती है क्यूंकि ये कोई आम गुफा नहीं बल्कि साक्षात् शिव का पाताल लोक है। इसी गेट से मंदिर का प्रांगण शुरू हो जाता है जहाँ पर यात्रियों के जूते चप्पल रखने की व्यवस्था है। दाहिने तरफ शिवलिंग के दर्शन आप कर सकते हैं और साथ में ही मंदिर कमेटी द्वारा रजिस्टर में एंट्री कराई जाती है और साथ में लाये कैमरे और डिजिटल आइटम्स जमा करने होते हैं।
गुफा में प्रवेश
अब आपकी जिज्ञासा चरम पर होती है क्योकि आपके सामने होता है मुख्य गुफा का एक छोटा सा प्रवेश द्वार, जहां से आपको लगभग 90 फीट नीचे उतरना होता है। यह गुफा 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है। अब बहुत ही पतले रास्ते से होकर इस मंदिर के अंदर जाना होता है । कई यात्री तो कुछ कदम उतरने पर ही वापस आ जाते हैं। वैसे गुफा के अंदर जाने के लिए लोहे की जंजीरें लगी हुईं है जिसकी सहायता से आप धीरे धीरे गुफा में जा सकते हैं। इस गुफा में लाइट हेतु जनरेटर की व्यवस्था मंदिर कमिटी द्वारा कराई गयी है। इसी संकरे रास्ते से एक एक कर पर्यटक संकरी गुफा में उतरते हैं। गुफा में लगभग 82 सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं, जिससे आपको यह अहसास होता है कि आप पृथ्वी के केंद्र में प्रवेश कर रहे हैं।
जमीन के अंदर लगभग 90 फीट नीचे जाने पर गुफा की दीवारों पर हैरान कर देने वाली आकृतियां नजर आने लगती हैं। प्रत्येक पत्थर, प्रत्येक गुफा या द्वार के भीतर प्रत्येक स्तंभ देवी-देवताओं, संतों और पौराणिक पात्रों के आकार में हिंदू देवताओं की कहानी को प्रकट करता है।
मंदिर में और क्या है खास ?
- गुफा में शेष नाग के आकर का पत्थर है उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने पृथ्वी को पकड़ रखा है। ऐसा कहा जाता है कि शेष नाग ने अपने सिर पर दुनिया का भार संभाला हुआ है।
- जब आप थोड़ा आगे चलेंगे तो आपको यहां की चट्टानों की कलाकृति हाथी जैसी दिखाई देगी। इस गुफा में एक हजार पैर वाला हाथी भी बना हुआ है।
- गुफा के अंदर एक हवन कुंड भी है. लोगों का मानना है कि इस कुंड के बारे में कहा जाता है कि इसमें जनमेजय ने नाग यज्ञ किया था, जिसमें सभी सांप जलकर भष्म हो गए थे मगर कुंड के ऊपर ही तक्षक नाग की आकृति आपको अचरज में डालती है।
- दीवारों पर हंस बने हुए हैं जिसके बारे में ये माना जाता है कि यह ब्रह्मा जी का हंस है।
- गुफा के मध्य भाग में सुन्दर पारिजात वृक्ष नजर आता है।
- पौराणिक कथाओं के आधार पर इस मंदिर में चार द्वार मौजूद हैं, जो रणद्वार, पापद्वार, धर्मद्वार और मोक्षद्वार के नाम से जाने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब रावण की मृत्यु हुई थी तब पापद्वार बंद हो गया था। इसके बाद कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद रणद्वार को भी बंद कर दिया गया था।
- ऐसी मान्यता है कि मंदिर में भगवान गणेश के कटे हुए सिर को स्थापित किया गया है। जिसके पीछे 108 पंखुड़ियों वाला ब्रह्म कमल एक चट्टान की आकृति पर बना हुआ है, जिससे लगातार अमृत समान पानी टपककर भगवान गणेश की मूर्ति पर गिरता रहता है।
- यहां से आगे चलने पर चमकीले पत्थर भगवान शिव जी की जटाओं को दर्शाते हैं। सफ़ेद वाले भाग में गंगा समायी हुई हैं.
- मान्यता है कि यहां ३३ कोटि देवी-देवता आकर शिव जी की आराधना करते हैं। बीच में शिवलिंग को नर्मदेश्वर महादेव के रूप में पूजा जाता है और इस लिंग पर जल डालने से जल तुरंत ही सूख जाता है।
- इस गुफा में चार आकृतियाँ बनी हैं जो चार युगों – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन आकारों में कोई परिवर्तन नहीं होता, लेकिन कलियुग का आकार लंबाई में धीरे धीरे बढ़ रहा है और माना जाता है जिस दिन यह गुफा की छत को छू लेगा, तब कलयुग का अंत हो जाएगा।
- गुफा में एक साथ चार धामों के दर्शन भी किए जा सकते हैं। गुफा में एक साथ केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ धाम देखे जा सकते हैं। केदारनाथ और अमरनाथ से बिलकुल मेल खाती हुई शिव के रूप यहाँ पर एक साथ देखकर अचरज जरूर होता है।
- काल भैरव, मुँह खोले जीभ लटकाये हुए शोभा पाते हैं।
और अंत में सामने होते हैं पाताल में महादेव – पाताल भुवनेश्वर। यहाँ पर यात्रीगण कुछ देर पूजन कर गुफा से वापस बाहर निकलते हैं।
कहा जाता है की पांडवों ने अंतिम समय में चौसर इसी जगह खेली थी और उसके बाद वे यही से हिमालय को निकले। यह भी धारणा है कि कुछ गुफाएं जो आज बंद हो गयी है वो कभी यह गुफा कैलाश पर्वत पर जाकर खुलती थी।
पाताल भुवनेश्वर की खोज?
कहा जाता है कि त्रेता युग में राजा ऋतुपर्णा ने इस गुफा की खोज की थी जिसके बाद उन्हें यहां नागों के राजा अधिशेष मिले थे। अधिशेष राजा ऋतुपर्णा को इस गुफा के अंदर ले गए जहां उन्हें सभी देवी-देवता और भगवान शिव के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि उसके बाद इस गुफा की चर्चा नहीं हुई लेकिन पांडवों ने द्वापर युग में इस गुफा को वापस ढूंढ लिया था और यहां रहकर भगवान शिव की पूजा करते थे। कलियुग में इस मंदिर की खोज आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में किया था।
फिलहाल यहाँ पर मुख्य रूप से भंडारी परिवार पूजन का कार्यभार लिए हुए हैं और काफी समय से उनकी पीढ़ियां यह उत्तरदायित्व निभा रहे हैं।
इन सभी बातों से अलग अगर विज्ञान की मानें तो पाताल भुवनेश्वर की गुफाएं स्टैलेक्टाइट और स्टैलेग्माइट संरचना है जिसमें स्टैलेक्टाइट्स ऊपर से नीचे और स्टैलेग्माइट जमीन से निकलती हैं और ऊपर की ओर विकसित होती हैं।
अंत में बस यही की मानो तो भगवान न मानो तो पत्थर। मगर इस गुफा को देखने के बाद विज्ञान पर आस्था का पलड़ा जरूर भारी दिखता । जो भी हो, लेकिन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित भगवान शिव की रहस्यमई गुफा पाताल भुवनेश्वर बेहद रोमांचक धार्मिक एहसास जरूर कराती है। साथ ही अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं तो एक बार भगवान भोलेनाथ के इस गुफा में जाकर उनके साथ ही 33 कोटि देवी–देवताओं के दर्शन का सौभाग्य जरूर प्राप्त करें।
पाताल भुवनेश्वर कैसे पहुंचे ?
पाताल भुवनेश्वर पहाड़ी सड़क मार्ग के माध्यम से प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों से जुड़ा हुआ है जहाँ से लोकल टैक्सी और बस द्वारा पाताल भुवनेश्वर पहुंचा जा सकता है।
अगर आप दिल्ली या NCR से आने का प्लान करते हैं तो आपके पास २ विकल्प हैं :
- १पहले विकल्प के तौर पर आप दिल्ली – हल्द्वानी -अल्मोड़ा -पनार पुल और फिर गंगोलीहाट कसबे से आगे होते हुए पातालभुवनेश्वर पहुंच सकते हैं. इस रूट से आपको लगभग 492 Km की दूरी तय करनी पड़ेगी, जिसमें हल्द्वानी से पाताल भुवनेश्वर तक लगभग 190 Km पहाड़ी मार्ग रहेगा।
- दूसरे विकल्प के तौर पर आप दिल्ली-रुद्रपुर – टनकपुर-चम्पावत -पनार पुल और फिर गंगोलीहाट से आगे होते हुए पातालभुवनेश्वर पहुंच सकते हैं. इस रूट से आपको लगभग 530 Km की दूरी तय करनी पड़ेगी, जिसमें टनकपुर से पाताल भुवनेश्वर तक लगभग 180 Km पहाड़ी मार्ग रहेगा।
- अगर आप देहरादून या हरिद्वार से आने का प्लान करते हैं तो आपके बेस्ट रूट रहेगा : देहरादून – ऋषिकेश – रुद्रप्रयाग – कर्णप्रयाग – बागेश्वर और फिर पाताल भुवनेश्वर।
पाताल भुवनेश्वर आने का सही समय :
बरसात के मौसम (मिड जून से अगस्त लास्ट तक ) को छोड़कर आप कभी भी पातालभुवनेश्वर घूमने का प्लान कर सकते हैं।
गुफा को देखने का समय आपको स्क्रीन पर दिखाया जा रहा है परन्तु कोशिश करें की २ बजे या उससे पहले गुफा के पास पहुंचने का प्रयास जरूर करें जिससे किसी प्रकार की परेशानी आपको न हो।
Summer : 8AM to 5:30PM
Winter : 9AM to 4:30PM
कहां रुके ?
रुकने के लिए गंगोलीहाट में आपको बजट में होटल मिल जायेंगे। जहाँ से पाताल भुवनेश्वर गुफा की दूरी १२-15 km ही है। इसके अलावा गुफा के पास भी रुकने के विकल्प मौजूद हैं परन्तु फॅमिली के साथ हो तो एडवांस्ड में प्लान जरूर करें। गुफा को देखने के बाद पिथौरागढ़ शहर में भी स्टे करना अच्छा विकल्प हो सकता है। जिस पर जल्द ही डिटेल्ड वीडियो चैनल पर अपलोड की जाएगी।
साथियो ये थी पाताल भुवनेश्वर गुफा की संपूर्ण जानकारी । आशा है आज का एपिसोड आपको पसंद आया होगा। फिर मिलते हैं किसी और एपिसोड में उत्तराखंड की कोई और जानकारी लेकर।
चैनल को लाइक शेयर और सब्सक्राइब जरूर करें। साथ ही कमेंट से यह जरूर बताएं की देवभूमि उत्तराखंड में आपकी पसंदीदा जगह कौन सी है।
तब तक
जय भारत जय उत्तराखंड
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