
13 districts and 13 goddess temples of Uttarakhand
दोस्तों उत्तराखंड गुरु में आप सभी का स्वागत है।
वैसे तो उत्तराखंड की हर एक चोटी पर माता का कोई न कोई मंदिर आपको दिख ही जाएगा। आज के खास एपिसोड में हम लाये हैं , उत्तराखंड के १३ अलग अलग जिलों से मातारानी के १३ प्रसिद्ध और शक्तिशाली मंदिरों की जानकारी। जब भी आप उत्तराखंड के इन जिलों में विजिट करें, तो इन मंदिरों के दर्शन करना न भूलें। चलिए तो शुरूआत करते हैं पहले डिस्ट्रिक्ट पिथौरागढ़ से । यहाँ का शक्तिशाली मंदिर है – हाट कालिका ।
माता महाकाली का ऐसा मंदिर , जो कुमाऊँ रेजीमेंट के सैनिकों को, रणभूमि में युद्ध करने के लिए ताकत एवं साहस देती है। यह कुमाऊं रेजिमेंट की रक्षक देवी कहलाती है। मां हाट कालिका के नाम पर ही रेजिमेंट का उद्घोष है “मां कालिका की जय “। जो सैनिकों के अंदर जोश भर देती है और युद्ध भूमि में उनकी रक्षा करती है। जिला पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित, मां हाट कालिका मंदिर, भगवती जगदंबा के महाकाली स्वरूप को समर्पित है। यह मंदिर माता महाकाली की शक्तिपीठों में से , एक है, और कई हजार वर्ष पुराना बताया जाता है।
लिस्ट में दूसरा नाम आता है, डिस्ट्रिक्ट : अल्मोड़ा , और मंदिर है : नंदा देवी मंदिर।
यह मंदिर अल्मोड़ा नगर के बीच में बसा है। जिसका निर्माण चंद राजाओं द्वारा किया गया था। कुमाऊं क्षेत्र के पवित्र स्थलों में से एक, नंदा देवी मंदिर, जिसका अल्मोड़ा जिले में विशेष धार्मिक महत्व है। वर्षों पुराना यह मंदिर कुमाऊंनी शिल्प शैली से निर्मित है और चंद वंश की ईष्ट देवी को समर्पित है। इस तीर्थ स्थान की दीवार के पत्थरों पर उकेरी गई कलाकृतियां सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है। नंदादेवी मंदिर में प्रतिवर्ष मेला लगता है। यह मेला सितम्बर महीने में (भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को) लगता है। इस मेले का विशेष महत्व हैं। यूं तो पूरे प्रदेश भर के लोगों में मां नंदादेवी के प्रति अटूट आस्था है, मगर सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में नंदादेवी मेले का अपना ख़ास महत्व है।
देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी जनपद में जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर स्थित है –सुरकंडा देवी का मंदिर। यह मंदिर जितना शक्तिशाली है, उतना ही सुन्दर भी है। इस मंदिर का प्रागण और आसपास का दृश्य भी बहुत सुन्दर है। केदारखंड व स्कंद पुराण के अनुसार, राजा इंद्र ने यहां देवी मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। यह स्थान समुद्रतल से करीब 3 हजार मीटर ऊंचाई पर है, इस कारण यहां से बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री अर्थात चारों धामों की पहाड़ियां नजर आती हैं। इसी परिसर में भगवान शिव एवं हनुमानजी को समर्पित मंदिर भी है।
पर्यटक कद्दूखाल से केवल 2 किमी की चढ़ाई करके मंदिर तक पहुंच सकते हैं। कद्दूखाल यहां का निकटतम शहर है जो चंबा से 24 किमी और मसूरी से 40 किमी दूर है।
अगले डिस्ट्रिक्ट की ओर बढ़ें तो, आगे है, डिस्ट्रिक्ट हरिद्वार, और मंदिर है, माँ – मनसा देवी।
वैसे तो मनसा देवी काफी प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। जिसका नाम आपने अवश्य सुना होगा फिर भी बता दें कि यह प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार से 3 किमी दूर शिवालिक पर्वत श्रृंखला में बिलवा पहाड़ पर स्थित है। देवी मनसा को भगवान शंकर की पुत्री के रूप में पुराणों में मान्यता प्राप्त है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां मनसा देवी की शादी ऋषि जगत्कारू से हुई थी, और उनके पुत्र का नाम आस्तिक था। मनसा देवी को नागों के राजा वासुकी की बहन के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर का इतिहास बहुत ही गौरवशाली है।
मंदिर तक जाने के लिए पैदल मार्ग के अलावा रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। जिससे आप मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
अब करते हैं बात चार धाम में से एक धाम – यमुनोत्री धाम की। यह मंदिर गढ़वाल क्षेत्र के उत्तरकाशी जनपद के पश्चिमी हिमालय में स्थित हैं।
यमुनोत्री धाम की विशाल पर्वत चोटियाँ , खूबसूरत ग्लेशियर और स्वच्छ पानी पर्यटकों को अपनी ओर आमंत्रित करता हैं। यमुना भारत की दूसरी सबसे पवित्र नदी मानी जाती हैं। वेदों के अनुसार देवी यमुना को सूर्य की बेटी और यम – देव की जुड़वां बहन माना जाता हैं। यमुनोत्री तीर्थ स्थल पर आने वाले पर्यटकों कि लम्बी कतार देखने को मिलती हैं।
यमुनोत्री तक किसी भी प्रकार से कोई सीधी सड़क कनेक्टिविटी नहीं है । निकटतम बस स्टॉप उत्तरकाशी में है, जो जानकी चट्टी से 122 किमी दूर है, जहां से यमुनोत्री की ट्रैकिंग यात्रा 6 किमी है। यदि आप पैदल यात्रा नहीं करना चाहते तो आप घोड़े और पालकी किराये पर ले सकते हैं।
सबसे शक्तिशाली मंदिरों में से एक है : कालीमठ मंदिर।
रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ की चोटियों से घिरा हिमालय में सरस्वती नदी के किनारे स्थित प्रसिद्ध शक्ति सिद्धपीठ श्री कालीमठ मंदिर स्थित है ।
कालीमठ मंदिर उत्तराखंड के इतिहास और कहानी को लेकर मान्यता है कि देवताओं ने इसी स्थान पर काली माँ की उपासना की थी। माँ काली ने इसी स्थान पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था। और यहीं पर महाकाली मंदिर के गर्भ गृह में समां गयीं थीं। तब से यहाँ पर महाकाली श्री यंत्र की पूजा की जाती है।
हरिद्वार से कालीमठ मंदिर पहुँचने के लिए आपको हरिद्वार-ऋषिकेश-तीन धारा-देवप्रयाग-श्रीनगर-धारीदेवी-रुद्रप्रयाग-अगस्त्यमुनि-चन्द्रपुरी-उखीमठ मुख्य पड़ावों से होकर जाना पड़ता है। उखीमठ से केवल 20 km की दूरी पर ही कालीमठ मंदिर (Kalimath Temple) स्थित है। कालीमठ मंदिर सबसे ताकतवर मंदिरों में से एक है, जिसमें शक्ति की शक्ति है.
उत्तराखंड के चम्पावत जनपद का प्रसिद्ध देवी मंदिर। जिसका नाम है – वाराही देवी। [B1]
उत्तराखंड के चम्पावत जिले के देवीधुरा में स्थित मां बाराही धाम अटूट आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि खुली आंखों से देखने वाला अंधा हो जाता है। इसी कारण देवी की मूर्ति को ताम्रपेटिका में रखा जाता है। सिर्फ वार्षिक पूजा के मौके पर देवी का पूजन और श्रृंगार भी आंखों में काली पट्टी बांधकर किया जाता है। 12वीं सदी में स्थापित इस मंदिर में चैत्रीय तथा अश्विन नवरात्रों में देवी के उपासकों की भारी भीड़ उमड़ती है। अनेक आयामों को छुने वाले इस मेले का प्रमुख आकर्षण ’’बग्वाल है। ’’बग्वाल’ एक तरह का पाषाण युद्ध है। जिसको देखने देश के कोने-कोने से दर्शनार्थी आते हैं। इस पाषाण युद्ध में चार खानों के, दो दल एक दूसरे के ऊपर पत्थर बरसाते है। बग्वाल खेलने वाले अपने साथ बांस के बने फर्रे पत्थरों को रोकने के लिए रखते हैं।
यह मंदिर लोहाघाट-अल्मोड़ा मार्ग पर लोहाघाट से लगभग 45 कि.मी की दूरी पर देवीधुरा में स्थित है । यहीं पर माता बाराही देवी का धाम है । जहाँ पर आप टैक्सी या निजी वाहन से पहुंच सकते हैं।
जनपद उधम सिंह नगर के चैती देवी मंदिर को माता बालसुन्दरी मन्दिर भी कहा जाता है, बहुत से भक्त यहाँ आध्यात्मिक आनंद तल्लीन होने और पवित्र तीर्थस्थल पर जाने के लिए आते हैं। [B2] मंदिर को ज्वाला देवी मंदिर और उज्जैनी देवी के नाम से भी जाना जाता है। यह काशीपुर के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक हैं। चैती मंदिर में सैकड़ों नवविवाहित जोड़े ने मां का दर्शन कर आशीर्वाद लिया हैं। ऐसी मान्यता है कि अष्टमी व नवमी के दिन मां के दर्शन से नवविवाहित जोड़ों के साथ मां का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। काशीपुर में चैती मंदिर की महिमा दूर-दूर तक हैं। जहां हर साल मां बाल सुंदरी देवी का डोला विराजमान होता हैं।
चैती देवी मंदिर उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिलें में काशीपुर शहर के बस स्टैंड से 3 किलोमीटर दूर काशीपुर के कुँडेश्वरी मार्ग पर स्थित हैं। जहाँ पर आप आसानी से पहुँच सकते हैं।
नगर के भीलेश्वर पहाड़ी पर स्थित माता चंडिका को बागेश्वर की नगरदेवी का दर्जा प्राप्त है। माता चंडिका को चंद शासकों के कुल पुरोहित पांडेय वंशजों ने चंपावत से यहां लाकर स्थापित किया था। वर्ष भर जिले के भक्तजन माता के दरबार में आकर पूूजा करते हैं। शारदीय और चैत्र नवरात्र में मंदिर में भक्त अधिक संख्या में आते हैं। इस दौरान भजन-कीर्तन कर मां चंडिका की आराधना की जाती है।
माता चंडिका को चंद शासनकाल में उनके कुल पुरोहित अपनी कुलदेवी के रूप में लाए थे, लेकिन आज पूरे जिले के लोगों की चंडिका के प्रति अगाध आस्था है। जिसके कारण चंडिका को लोग नगरदेवी के रूप में मान्यता देते हैं। सच्चे मन से पूजा करने पर मां भक्तों की हर मुराद पूरी करती है।
यह मंदिर उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित है। यह इस क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। चंडिका देवी मंदिर बागेश्वर शहर से मात्र 2 किमी दूर है।
कालिंका माता मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के बिरोनखाल ब्लॉक में स्थित है। मंदिर परिसर अल्मोड़ा जिले की सीमा के करीब स्थित है और देवी काली को समर्पित है। यह मंदिर लोगों की आस्था, विश्वास और श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र है। मंदिर में सदियों से चली आ रही बलि प्रथा, बूंखाल मेला इस क्षेत्र की हमेशा से पहचान रही है। साल 2014 से मंदिर में बलि प्रथा बंद होने के बाद पूजा-अर्चना, आरती, डोली यात्रा, कलश यात्रा और मेले के स्वरूप की भव्यता इसकी परिचायक है।
बूंखाल कालिंका माता मंदिर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे ज्यादा सुगम है। पौड़ी जनपद के बीरोंखाल नामक जगह 60 किमी दूरी तय कर बूंखाल कालिंका माता मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है।
लिस्ट में अगला नाम है – सिमली की चंडिका माता मंदिर, जिसका बेहद खास महत्व है. उत्तराखंड के चमोली जिले के कर्णप्रयाग से 5 किलोमीटर की दूरी पर चंडिका माता मंदिर स्थित है. वैसे तो मंदिर को मूलतः गोविंद मंदिर समूह के नाम से जाना जाता है, लेकिन जब से माता चंडिका की मूर्ति बहकर इस क्षेत्र में आई हैं, तब से इस पूरे मंदिर परिसर को मां चंडिका परिसर और मंदिर के नाम से जाना जाता है.
मंदिर के पुजारी प्रदीप गैरोला बताते हैं कि यह मंदिर मूल रूप से गोविंद मठ है और यहां भगवान विष्णु से संबंधित प्रतिमाएं हैं. भगवान विष्णु यहां चतुर्भुज रूप में शंख चक्र धारण किए हुए हैं.[B3]
चंडिका माता मंदिर पहुंचने के लिए सड़क सुविधा पूर्णतया सुचारू है. कर्णप्रयाग से सिमली के लिए सड़क से आसानी से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है.
संतला देवी का मंदिर देहरादून का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को संतोला देवी या संतुला देवी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर देहरादून में घूमने ,देखने और समय बिताने तथा सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यों हेतु सबसे उपयुक्त है। संतोला देवी मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। प्रतिदिन सैकड़ो भक्त यहां माता के दर्शनों के लिए आते हैं। संतोलादेवी मंदिर में शनिवार का विशेष महत्व है। यह माना जाता है ,कि इस दिन माँ संतोलादेवी पत्थर में परिवर्तित हुई थी। कई लोग यह भी मानते हैं कि आज भी, माँ संतला देवी की मूर्ति पत्थर में परिवर्तित होती है। इस कारण यहाँ शनिवार को भीड़ अधिक होती है। यह मंदिर भाई बहीनों के प्यार और एकता का प्रतीक माना जाता है।
संतला देवी देहरादून जाने के लिए , देहरादून शहर से जैतूनवाला, उसके आगे पंजाबीवाला और फिर वहाँ से आगे 2 किलोमीटर पैदल ट्रैक है।
जनपद नैनीताल में वैसे तो नैनीताल के साथ साथ कई पर्यटक स्थल हैं परन्तु मातारानी के मंदिरों की बात करें तो रामनगर शहर से १५ km की दूरी पर सुंदरखाल नामक जगह पर बसा गर्जिया देवी मंदिर, शक्तिशाली और दर्शनीय मंदिरों में से एक है. कोसी नदी के बीचोबीच बसा यह मंदिर एक टीले पर बसा हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार गर्जिया देवी का मंदिर जिस टीले पर स्थित है, वह टीला एक बार कोसी नदी में आयी बाढ़ में बहकर यहाँ तक पंहुचा। तब भैरव देव ने टीले को आवाज लगायी और कहा, ‘ठहरो बहन ठहरो। हम सबके साथ यहां निवास करो। ‘ इसके बाद गर्जिया देवी कोसी नदी के बीच में ही रुक गयी और वहीं उनका मंदिर बनवाया गया।
इस मंदिर तक पहुंचने के लिए रामनगर शहर तक जाकर आप वहां से बस या निजी वाहन से मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं। रामनगर में ही निकटम रेलवे स्टैशन भी स्थित है.
नवरात्री पर ये था उत्तराखंड गुरु के माध्यम से एक विशेष एपिसोड। १३ डिस्ट्रिक्स और इनमें स्थित मातारानी के १३ शक्तिशाली मंदिर। आशा है आज का एपिसोड आपको पसंद आया होगा। चैनल को अपना प्यार और सहयोग जरूर दें और अपने दोस्तों और परिवारजनों तक इस वीडियो को जरूर पहुचाएं ।
मिलते हैं फिर किसी नए एपिसोड में तब तक :
जय भारत जय उत्तराखंड
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